(जम्मू): कश्मीर में आज शहीद दिवस मनाया गया। 1931 में श्रीनगर सेंट्रल जेल ( Srinagar Central Jail ) के बाहर गोलीबारी में मारे गए लोगों की शहादत की याद में अलगाववादियों की ओर से बंद बुलाया गया। हालांकि अलगाववादियों का अमरनाथ यात्रा से कोई ताल्लुकात नहीं था पर एहतियात के तौर पर राज्य सरकार की ओर से एक दिन के लिए अमरनाथ यात्रा को स्थगित कर दिया गया। ख़बर में हम आपकों 13 जुलाई 1931 के दिन की वह दास्ता बताने जा रहे है जिसे जम्मू—कश्मीर के लोग आज भी याद कर सहम जाते है।
(जम्मू): कश्मीर में आज शहीद दिवस मनाया गया। 1931 में श्रीनगर सेंट्रल जेल ( Srinagar Central Jail ) के बाहर गोलीबारी में मारे गए लोगों की शहादत की याद में अलगाववादियों की ओर से बंद बुलाया गया। हालांकि अलगाववादियों का अमरनाथ यात्रा से कोई ताल्लुकात नहीं था पर एहतियात के तौर पर राज्य सरकार की ओर से एक दिन के लिए अमरनाथ यात्रा को स्थगित कर दिया गया। ख़बर में हम आपकों 13 जुलाई 1931 के दिन की वह दास्ता बताने जा रहे है जिसे जम्मू—कश्मीर के लोग आज भी याद कर सहम जाते है।
हम भारतीयों को भगवान को महसूस करने और गुरु के महत्व को जानने का सौभाग्य मिला है। गुरु कौन है? ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। ‘गु’ का अर्थ है जो गुणों से परे है (गुणातीता); ‘रु’ का अर्थ जो रूपोंसे परे है (रूपवर्जिता)। गुरु वही होता है जो राह दिखाता है। वह पथ को प्रका शस्तंभ की तरह रोशन करता है। केवल ईश्वर ही सच्चा गुरु है!
जीवन में अक्सर हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो कहते हैं कि उन्हें जीवन में आगे का रास्ता नहीं पता। कुछ के लिए भय, निराशा, दिशा का अभाव आदि होता है।
हम अक्सर युवा माता-पिता को खेल, नृत्य और संगीत कक्षाओं, ट्यूशन आदि में भाग लेने के लिए बच्चों पर जोर देते हुए देखते है। यह सबस्कूल और होमवर्कके अलावा हैं, जो स्पष्ट रूप से सबसे आगे हैं। क्या भगवान के लिए कोई समय है? ज़रा सोचिये! यदि आप एक युवा माता या पिता हैं, तो याद रखें कि ईश्वर की भक्ति या ईश्वर के प्रति जागरूकता का बीज जीवन में जल्दी बोना पड़ता है। एक ईश्वर प्रेमी बच्चा ही दोषों में लिप्त नहीं होता क्योंकि वह सही और गलत के बीच अंतर कर सकता है। कई बच्चे भटक रहे हैं क्योंकि माता-पिता उन्हें आधुनिक और ‘कूल’ बनाने के प्रयास में उन्हें भगवान के बारे में बुनियादी जागरूकता नहीं दे रहे। बच्चों को जन्म से ही ‘ईश्वर’ से परिचय कराना चाहिए और ये माता-पिता के अलावा और कौन करेगा?
हमारे माता-पिता ने सबसे बड़ा यह वरदान दिया कि उन्होंने हमे भगवान और गुरु, भगवान श्री सत्य साई बाबा से जोड़ा। भगवान बाबा ने हमें सिखाया कि प्रार्थना और समर्पण ही सभी प्रकार की परिस्थितियों में आगे बढ़ने का रास्ता है। एक सुंदर समर्पण प्रार्थना जिसे साई के भक्त अक्सर पढ़ते हैं, आप के साथ सांझा कर रही हूँ:
“समर्पण का अर्थ है: अपने विचारों को परेशानियों से दूर करना, उन्हें आपके सामने आने वाली कठिनाइयों से और अपनी सभी समस्याओं से दूर करना। सब कुछ यह कहते हुए मेरे हाथ में छोड़ दो, ‘हे प्रभु, यहकाम आप है। आप हीइसके बारे में सोचो।’”
हम जो कुछ भी करते हैं, उसके लिए यदि हम उसे प्रार्थना सहित इस भावना के साथ अर्पित करें कि यह परमेश्वर का कार्य है; तब काम ही पूजा बन जाता है। यदि हम प्रशंसा या निंदा, जो किए गए कार्य का परिणाम हो सकता है, को छोड़ देते हैं, तो काम करना आसान हो जाता है। तो बस अपना सर्वश्रेष्ठ करो और बाकी भगवान पर छोड़ दो!
मेरे गुरु और मेरे प्रभु, भगवान बाबा कहा करते थे, “मेरा जीवन मेरा संदेश है।” अपने सांसारिक प्रवास के अंतिम कुछ वर्षों में, उन्होंने कहा, “तुम्हारा जीवन, मेरा संदेश है।” तब ‘साईं भक्त’ कहे जाने वाले भक्तों को यह एहसास होने लगा कि उन्हें अपने आप को कैसे संचालित करना होगा, क्यों की उनका आचरण ही उनका संदेश था! ऐसा करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है लेकिन यह एक ऐसा विशेषाधिकार है जिसे मैं कभी नहीं खोना चाहूंगी!
भगवान बाबा ने कहा कि यदि आप इस जागरूकता में सब कुछ करते हैं कि भगवान आपको देख रहे हैं, हर समय आपकी बात सुन रहे हैं, तो आप कभी भी कुछ गलत नहीं करेंगे! इसलिए, मैं निरंतर उनकीजागरूकता में रहती हूँ! मैं जो कुछ भी हूं, बाबा के आशीर्वाद से हूं। वह मेरी प्रेरणा, विश्वासपात्र, मार्गदर्शक, साथी और शाश्वत पिता हैं; जो मेरे सभी विचारों, वचनों और कर्मों के साक्षी हैं।
यह लिखते हुए मुझे एक भजन की याद आ रही है, “मेरे मन के अंधतमस में, ज्योतिर्मय उतरो…” इसे सुनकर मुझे एहसास हुआ कि हमारे मन के अंधेरे में, एक दिव्य प्रकाश है … अगर हम दुनिया से आँखें बंद कर लेंऔर इस प्रकाश को देखें तोहम इसे अपने मन मंदिर में लगातार चमकते हुए पा सकते हैं! यह हमेशा से रहा है; बस हमें इसकी जानकारी नहीं है!
एक बार एक भक्त ने बाबा से पूछा, “क्या आप भगवान हैं?” उन्होंने कहा, “हां मैं भगवान हूँ और तुम भी भगवान् हो। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं इसे जानता हूं, लेकिन तुम इसे नहीं जानते!” यदि आप उस कथन की गहराई के बारे में सोचने के लिए रुकें, तो यह आपको स्तब्ध और अभिभूत कर देगी। हाँ! मैं शरीर नहीं हूँ; लेकिन उसमें रहने वाली आत्मा हूँ। यह जागरूकता कि यह आत्मा, परम-आत्मा का एक छोटा साहिस्सा है, अत्यंत सशक्त और दिल को छु जाने वाली है। संपूर्ण के एक नमूने में, संपूर्ण के सभी गुण होंगे ना? मैं उससंपूर्ण का एक नमूना हूं; जिसका मैं हिस्सा हूँ! मैं परम आत्मा का अंश हूँ! मैं देवत्व का अंश हूँ!
हाँ! इसीलिए बाबा हम सभी को ‘दिव्य आत्मा स्वरूप’ कह कर संबोधित करके, अपना प्रवचन शुरू करते थे! उनके बारे में बात करना और उन्हें पृथ्वी पर चलते हुए देखने के आनंद को याद करने से अभी भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और यह अभी भी मेरी आँखों को कृतज्ञता से भर देता है। उन की याद अभी भी मुझे वह झुनझुनी का एहसास देती है और अभी भी मुझे एक गु-रू की तरह रोशनी दिखाती है!
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