1 बुढ़िया के पैसे माँगने पर लेखक ने क्या समझा? - 1 budhiya ke paise maangane par lekhak ne kya samajha?

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 1 ईदगाह Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 1 ईदगाह

RBSE Class 11 Hindi ईदगाह Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
"ईदगाह' कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे ईद के अवसर पर ग्रामीण परिवेश का उल्लास प्रकट होता है। 
उत्तर :
कहानी के प्रारम्भ में 'ईद' के अवसर पर उल्लास का दृश्य प्रकट किया है। ग्रामीण परिवेश की प्रकृति और निवासियों में उत्साह और उमंग व्याप्त है। वृक्षों पर हरियाली व्याप्त है, खेतों में अजीब रौनक है, आसमान में लालिमा व्याप्त है, सूर्य भी प्यारा और शीतल लग रहा है। मानो प्रकृति भी ईद की मुबारकवाद दे रही है। सारे गाँव में हलचल थी। बच्चे ईदगाह जाने के लिए उत्सुक थे और आनन्द मना रहे थे। युवक और वृद्ध तैयारी में लगे थे। कोई कुरते में बटन लगाने के लिए पड़ोस के घर से सुई-धागा लेने दौड़ रहा था तो कोई जूतों को नरम करने के लिए तेल के लिए तेली के पास दौड़ रहा था। किसी को बैलों की चिन्ता थी इसलिए उन्हें सानी-पानी देने का प्रयत्न कर रहा था। इस प्रकार ग्रामीण परिवेश का उल्लास प्रकट किया है।

प्रश्न 2. 
'उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनन्द भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।' इस कथन से लेखक का क्या आशय है? 
उत्तर :
हामिद की दादी अमीना ईद के दिन उदास थी पर हामिद को उदासीनता से कोई मतलब नहीं था। उसकी दादी ने उसे कह रखा था कि उसके अब्बाजान कमाकर रुपयों की बहुत-सी थैलियाँ लेकर आयेंगे और अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लेने गई हैं। इसी करण हामिद प्रसन्न है। हामिद आशान्वित है। उसे रुपये मिलेंगे और वह अच्छी चीजें खरीदेगा। अमीना अभावों के कारण दुखी है, किन्तु हामिद को अभावों का आभास भी नहीं है। वह तो आशा की उमंग से भरा हुआ है। - वह आशा के आगे सारी कठिनाइयों को भूल गया है। आशा व्यक्ति को शक्ति देती है, अभावों से लड़ने की क्षमता देती है। वह तो कल्पना के पंख लगाकर उड़ रहा था। दादी की उदासीनता भी उसे प्रभावित नहीं कर सकी।

प्रश्न 3. 
'उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
ईद के दिन बालक प्रसन्न थे और मेले में जाने को उत्सुक थे किन्तु परिवार के बड़ों को तो गृहस्थी का उत्तरदायित्व निभाना था। उन्हें सेवैयों को पकाने के लिए दूध और शक्कर की व्यवस्था करने की चिन्ता थी। पैसों की कमी के कारण उन्हें चौधरी कायम अली के घर जाना पड़ रहा है। बच्चे क्या जाने कि कायम अली अगर आँखें बदल लें तो ईद की खुशी मुहर्रम के मातम में बदल जाएगी। गरीबी के कारण चौधरी की चौखट पर चढ़ना जरूरी है। बच्चे बड़ों की इस मजबूरी को नहीं समझते हैं। उन्हें तो ईद मनाने और ईदगाह के मेले में जाने की जल्दी है।

प्रश्न 4.
'मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।' इस कथन के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि 'धर्म तोड़ता नहीं जोड़ता है।' 
उत्तर : 
धर्म सब को एक सूत्र में बाँधता है, भ्रातृत्व और प्रेम का भाव जाग्रत करता है। कहानीकार ने ईदगाह में रोजेदारों द्वारा नमाज अदा करने की घटना का वर्णन कर इस कथन की पुष्टि की है। रोजेदार पंक्तिबद्ध एक दूसरे के पीछे खड़े हो जाते हैं। पीछे आने वाले पीछे खड़े होते हैं। लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुकते हैं, फिर सब एक साथ खड़े होते हैं, एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। यह क्रिया कई बार होती है। ऐसा लगता है मानो जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ। यहाँ धन और पद के कारण कोई भेदभाव नहीं। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। नमाज अदा के बाद सभी आपस में गले मिलते हैं। इसे देखकर यह लगता है मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।। 

प्रश्न 5. 
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए - 
(क) कई बार यही क्रिया होती है ......... आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है। 
(ख) बुढ़िया. का क्रोध ........ स्वाद से भरा हुआ।
उत्तर :
इस प्रश्न का उत्तर व्याख्या वाले अंश में देखें।

प्रश्न 6.
हामिद ने चिमटे की उपयोगिता को सिद्ध करते हुए क्या-क्या तर्क दिए ? 
उत्तर : 
हामिद के साथियों के पास पैसे थे। उन्होंने खिलौने और मिठाई खरीदी। हामिद तीन पैसे का धनी था, उसने चिमटा खरीदा। साथियों ने उसकी हँसी उड़ाई। हामिद ने अपने तर्कों से उन्हें परास्त कर दिया। उसने कहा-मेरा चिमटा जमीन पर गिरा तो टूटेगा नहीं, तुम्हारे खिलौने टूट जायेंगे। कन्धे पर रखने से यह बन्दूक हो जाएगा। हाथ में लेने पर फकीरों का चिमटा हो जाएगा। यह मंजीरे का काम कर सकता है।

चिमटे से तुम्हारे खिलौनों पर प्रहार करूँ तो उनकी जान निकल म्हारी खंजरी का पेट फाड़ देगा, मेरा यह चिमटा। मेरा चिमटा बहादर है, यह आग में, पानी में, आँधी और तफानों में डटा खड़ा रहेगा। शेर के आने पर तुम्हारे खिलौने डरकर भाग जायेंगे पर मेरा चिमटा रुस्तमे-हिन्द है, शेर की गरदन पर सवार होकर उसकी आँखें निकाल लेगा। हामिद के तर्क सुनकर सारे साथी निरुत्तर हो गए। 

प्रश्न 7. 
गाँव से शहर जाने वाले रास्ते के मध्य पड़ने वाले स्थलों का ऐसा वर्णन लेखक ने किया है मानो आँखों के सामने चित्र उपस्थित हो रहा हो। अपने घर और विद्यालय के मध्य पड़ने वाले स्थानों का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। 
उत्तर :
मेरा विद्यालय शहर में है। मैं गाँव से विद्यालय जाता हूँ। रास्ते में लहलहाते खेतों को देखता हूँ। खेतों पर उड़ते पक्षियों को देखता हूँ, वृक्षों पर बैठे पक्षियों की चहकने की आवाज सुनता हूँ। शहर में प्रवेश करते ही शिवालय मिलता है जहाँ पूजा की थाली लिए-स्त्री-पुरुषों को जाते देखता हूँ। पास ही फूल माला और मिठाई की दुकान है जहाँ से श्रद्धालु माला और प्रसाद खरीदते हैं। पास ही एक बगीचा है जहाँ लोग हरी घास पर घूमते दिखते हैं, कुछ व्यायाम करते दिखते हैं। विभिन्न प्रकार के पुष्प खिले हैं, जिनकी सुगन्ध से वातावरण महक जाता है। विद्यालय में प्रवेश करते ही खेल के मैदान में लड़कों को क्रिकेट खेलते देखता हूँ। 

प्रश्न 8. 
'बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई।' इस कथन में 'बूढ़े हामिद' और 'बालिका अमीना' से लेखक का क्या आशय है ? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
परिवार में मुखिया या बड़े-बूढ़े परिवार और पारिवारिक जनों का ध्यान रखते हैं, उनके उपयोग की वस्तुएँ जुटाते हैं। उसी प्रकार हामिद ने अपनी बूढ़ी दादी के कष्ट को ध्यान में रखकर चिमटा खरीदा। उसने बड़े-बूढ़ों की तरह दांदी अमीना का ध्यान रखा। अमीना पोते का स्नेह देखकर फूट-फूटकर रो रही थी और हामिद बड़े-बूढ़ों की तरह दादी को समझा रहा था। यह हामिद का बूढ़ों का सा व्यवहार था। 

अमीना चिमटे को देखकर दुखी हुई। बच्चे जैसे बिना सोचे-समझे क्रोध करने लगते हैं, वैसे ही अमीना भी क्रोधित हो गई। किन्तु हामिद का स्नेह और विवेक देखकर वह गद्गद हो गई और बच्चों की तरह रोने लगी। उसका यह रुदन बालिका की तरह था। इसी से लेखक ने कहा-"बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई थी।"

प्रश्न 9. 
'दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।'-लेखक के अनुसार हामिद अमीना की दुआओं और आँसुओं के रहस्य को क्यों नहीं समझ पाया ? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
ईद के मेले में खिलौनों और मिठाई की उपेक्षा कर दादी अमीना के कष्ट को ध्यान में रखकर हामिद ने चिमटा खरीदा। जब अमीना ने हामिद के स्नेह और विवेक को समझा तो वह रोने लगी और दुआएँ देने लगी। भोला बच्चा यह नहीं समझ पाया कि दादी क्यों रो रही है। उसने सोचा होगा कि दादी को चिमटा देखकर दुख हुआ है इसलिए रो रही है। वह क्या जाने कि इसके पीछे कितना स्नेह भरा है। दादी का वात्सल्य आँखों के द्वारा आँसुओं के रूप में पिघल कर बाहर आ रहा है। ये दुआएँ उसकी छिपी भावनाएँ हैं जो वाणी से बाहर निकल रही हैं। नासमझ हामिद दादी अमीना की भावनाओं को नहीं समझ पाया।

प्रश्न 10. 
हामिद की जगह आप होते तो क्या करते ? 
उत्तर : 
हामिद की जगह यदि मैं होता तो मैं भी वही करता जो हामिद ने किया। दादी अमीना के सिवा हामिद का दुनिया में कोई और नहीं था। वह प्रतिदिन रोटी सेकते वक्त अपनी दादी के हाथों को जलता देखता था, अतः उन्हें कष्ट से बचाने के लिए उसने उनके लिए चिमटा खरीदा। यदि मेरी दादी माँ के साथ ऐसी ही समस्याएँ होती तो मैं भी उनकी आवश्यकता का सामान ही खरीदता, जिससे उन्हें आराम मिलता। 

योग्यता-विस्तार से - 

प्रश्न 1.
प्रेमचन्द की कहानियों का संग्रह 'मानसरोवर' नाम से आठ भागों में प्रकाशित है। अपने पुस्तकालय 
से लेकर उसे पढ़िए। 
उत्तर : 
छात्र स्वयं करें। 

प्रश्न 2. 
इस कहानी में लोक प्रचलित मुहावरों की भरमार है, जैसे-नानी मरना, छक्के छूटना आदि। इस पाठ में आए मुहावरों की एक सूची तैयार कीजिए। 
उत्तर : 
इस पाठ में प्रयोग मुहावरे इस प्रकार हैं - 

  • आँखें बदलना - मुकर जाना या धोखा देना। 
  • राई का पर्वत बनाना। - छोटी बात को बड़ा बना देना। 
  • दिल के अरमान निकालना - सारी इच्छाएं पूरी करना। 
  • दिल कचोटना - दुखी होना। 
  • सिर पर सवार होना - परेशान करना। 
  • बेड़ा पार होना - समस्या हल होना। 
  • मुँह चुराना - उपेक्षा करना। 
  • पैरों में पर लगना - अत्यधिक खुश होना। 
  • उल्लू बनाना - बुद्धू बनाना। 
  • काम से जी चुराना - काम न करना। 
  • आँखों तले अँधेरा छाना - कुछ समझ न आना। 
  • धावा बोलना - हमला करना।
  • मुँह छिपाना - लज्जित होना।
  • गर्दन पर सवार होना - अत्यधिक परेशान करना।
  • पैरों पड़ना - खुशामद करना। 
  • आग में कूदना - जान की परवाह न करना। 
  • मुँह ताकते रहना - हैरान रह जाना। 
  • गर्मी दिमाग में चढ़ना - घमंड हो जाना। 
  • माटी में मिल जाना - समाप्त हो जाना। 
  • छाती पीटना - विलाप करना। 
  • गद-गद होना - प्रसन्न होना।

RBSE Class 11 Hindi ईदगाह Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
ज्योतिबा का नाम किस सूची में नहीं था -
(क) मानसरोवर 
(ख) सोजे वतन 
(ग) निर्मला 
उत्तर : 
(ख) सोजे वतन

प्रश्न 2. 
ईदगाह कहानी का नायक है -
(क) मोहसिन 
(ख) महमूद 
(ग) हामिद 
उत्तर : 
(ग) हामिद 

प्रश्न 3. 
मेले जाते समय हामिद को दादी ने कितने पैसे दिए ? 
(क) चार आने 
(ख) बारह पैसे 
(ग) तीन पैसे 
उत्तर : 
(ग) तीन पैसे 

प्रश्न 4. 
महमूद ने कौन-सा खिलौना खरीदा ? 
(क) भिश्ती 
(ख) वकील 
(ग) सिपाही 
उत्तर : 
(क) भिश्ती 

प्रश्न 5. 
हामिद के पिता का नाम है - 
(क) आमिर 
(ख) आबिद
(ग) सलमान 
उत्तर : 
(ख) आबिद

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न -

प्रश्न 1. 
हामिद कौन है? उसकी दादी का क्या नाम है? 
उत्तर :
हामिद चार-पाँच साल का लड़का है। उसके माता-पिता नहीं हैं। उसकी दादी का नाम अमीना है। 

प्रश्न 2. 
बच्चे ईदगाह जाने के लिए क्यों उत्साहित हैं? 
उत्तर : 
आज ईद है, इसलिए बच्चे ईद की नमाज अदा करने व ईदगाह पर लगे मेले का आनन्द लेने के लिए उत्साहित हैं। 

प्रश्न 3. 
हामिद के चरित्र की प्रमुख विशेषता लिखिए। 
उत्तर : 
हामिद के चरित्र की प्रमुख विशेषता है उसका संवेदनशील होना। वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना को बहुत चाहता है और उन्हें तकलीफ से बचाने के लिए वह खिलौनों का मोह त्यागकर उनके लिए चिमटा खरीदता है।

प्रश्न 4. 
हामिद ने मेले से चिमटा ही क्यों खरीदा?
उत्तर : 
हामिद बहुत समझदार बच्चा है। बचपन से ही उसमें जिम्मेदारी की भावना आ गई है। साथ ही वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना से बहुत प्रेम करता है। वह अपनी दादी अमीना की उँगलियों को रोटी सेंकते समय आग में जलने से बचाना चाहता था, इसलिए उसने चिमटा खरीदा। 

प्रश्न 5. 
'ईदगाह' कहानी का संक्षिप्त कथानक लिखिए। 
उत्तर : 
तीस रोजों के बाद ईद आई। सभी प्रसन्न थे और ईदगाह जाने की तैयारी करने लगे। बच्चों में अति शीघ्र ईदगाह जाने की उत्सुकता थी। हामिद भी अपने साथियों के साथ ईदगाह जाने को तैयार था। सभी साथी अपने पिता के साथ ईदगाह जा रहे थे। हामिद अकेला ही था। ईदगाह में हामिद के साथियों ने मिट्टी के खिलौने खरीदे और मिठाई खाई। हामिद का मजाक भी उड़ाया। उसके पास तीन पैसे ही थे। अतः उसने दादी का कष्ट समझकर चिमटा खरीदा। हामिद की दादी उसका तर्क सुनकर गदगद हो गई और उसे दुआएँ देने लगी। 

प्रश्न 6. 
प्रेमचन्द की कहानियों के संग्रह का नाम क्या है ? इसके कितने भाग हैं ? 
उत्तर : 
प्रेमचन्द की कहानियों के संग्रह का नाम मानसरोवर है। इसके आठ भाग हैं। 

लघु उत्तरीय प्रश्न -

प्रश्न 1. 
'ईदगाह' कहानी में प्रकृति और मानव प्रकृति का सुन्दर वर्णन हुआ है। इस कथन की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
कहानी का आरम्भ प्रकृति के रमणीय चित्रण से हुआ है। सूर्य की सुनहरी किरणों ने आकाश को रंग दिया है। वृक्षों की हरियाली मन को लुभा रही है। सूर्य की चमकीली धवल किरणें खेतों पर पड़ रही हैं जिससे खेतों में अजीब चमक व्याप्त हो गई है। प्रभात का सूर्य शीतल है मानो वह भी प्रसन्न है और सबको ईद की बधाई देने आया है। इस अवसर पर सभी प्रसन्न हैं और ईदगाह जाने की तैयारी में व्यस्त हैं। बच्चों को खुशी है, मेले का आनन्द उन्हें आकर्षित कर रहा है तो बड़े-बूढ़ों को चिन्ता है कि पैसों के अभाव में त्योहार कैसे मनेगा! लेखक ने बच्चों और बड़ों की मानव प्रकृति का अच्छा चित्रण किया है।

प्रश्न 2. 
'ईदगाह' कहानी में उल्लास और चिन्ता दोनों का समन्वय हुआ है। पठित कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
कहानी के प्रारम्भ में ही ईद के त्योहार का उल्लास दिखाया है। बच्चों और बड़ों में उत्साह और उमंग है। बच्चे प्रसन्न हैं, सेवैयाँ खाने को मिलेंगी। मेले में जाकर खिलौने खरीदेंगे, मिठाई खायेंगे। वे बार-बार जेब से पैसे निकालकर गिनते हैं। सबके चेहरे खिले हैं। बड़े-बूढ़े भी ईदगाह जाने की तैयारी में व्यस्त हैं। कोई कुरते में बटन लगाने का प्रयत्न कर रहा है, कोई जूतों में तेल लगाकर नरम करने का प्रयास कर रहा है, कोई बैलों को पानी-सानी देने की शीघ्रता कर रहा है। 

बड़े-बूढ़े चिन्तित भी हैं। आर्थिक अभाव के कारण त्योहार कैसे मनेगा? चौधरी कायम अली के पास से पैसे लाने की चिन्ता में हैं। उन्हें चिन्ता है यदि चौधरी ने सहायता नहीं की तो त्योहार और मेले का आनन्द फीका पड़ जाएगा। हामिद की दादी अमीना भी चिन्तित है। एक ओर उसे हामिद को अकेले मेले में भेजने की चिन्ता है, तो दूसरी ओर पैसों की तंगी के कारण त्योहार मनाने की चिन्ता है। इस प्रकार कहानी में उल्लास और चिन्ता का सुन्दर समन्वय हुआ है। 

प्रश्न 3. 
'सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद।' हामिद की प्रसन्नता का क्या कारण है ? 
उत्तर :
माता-पिता विहीन चार-पाँच बरस का बालक हामिद जो अपनी दादी अमीना की गोद में पल रहा है। उसकी दादी ने कह रखा है कि उसके अब्बाजान बहुत-सी थैलियाँ लेकर आएँगे और अम्मीजान अल्लाह मियाँ के-घर से अच्छी-अच्छी चीजें लेकर आएँगी। इसी आशा के कारण वह प्रसन्न है। उसने सोच रखा है वह नये जूते खरीदेगा, नई चमकीली टोपी लायेगा। महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी इतने सारे पैसे कहाँ से लायेंगे। उसकी कल्पना में पंख लग गए थे। इसलिए हामिद सबसे ज्यादा प्रसन्न था। उसे अभाव की कल्पना भी नहीं थी। वह तो अब्बा और अम्मी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था और अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा रहा था। 

प्रश्न 4.
"आशा तो बड़ी चीज है और फिर बच्चों की आशा ! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है।" इस कथन को सिद्ध कीजिए। 
उत्तर : 
आशा चाहे बड़ों की हो अथवा बच्चों की उत्साह पैदा करती है। बड़ों की आशा क्रियात्मक होती है, किन्तु बच्चों की आशा कल्पना पर आधारित होती है। कहानी में बच्चों की आशा का सुन्दर वर्णन किया है। बच्चों में ईदगाह जाने की खुशी है। ईदगाह में खिलौने खरीदेंगे, मिठाई खाएँगे, इसी आशा में प्रसन्न हैं। हामिद की आशा तो कल्पनातीत है। उसे अब्बाजान से पैसे मिलेंगे, अम्मीजान उसके लिए अच्छी-अच्छी चीज लायेंगी। वह नए जूते लेगा, अच्छी टोपी खरीदेगा। साथियों के पास इतने पैसे नहीं होंगे। दादी की झूठी दिलासा पर वह इतनी सारी कल्पनाएँ करता है जिनका कोई सिर-पैर नहीं था। बच्चे बड़ी जल्दी आशा कर लेते हैं और उस आशा में न जाने क्या-क्या कल्पनाएँ कर लेते हैं। 

प्रश्न 5. 
'किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को ? इस घर में उसका काम नहीं।' इस कथन के आधार पर अमीना की व्यथा को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। वह सोच रही है सभी ईद मना रहे हैं, प्रसन्न हैं। सभी घरों में उजाला है लेकिन मेरे घर में अँधेरा है। यदि उसका पुत्र आबिद होता तो ईद इसी तरह नहीं जाती। उसे दो चिन्ताएँ सता रही हैं, एक हामिद की, दूसरी ईद पर सेवैयाँ माँगने वालों की। दूसरे बच्चों को नये कपड़े पहनकर ईद में जाते हुए देखेगा तो वह क्या सोचेगा। पाँव में जते नहीं हैं. सिर पर नई टोपी नहीं है। वह नासमझ है. मजबरी को क्या सम मेहतरानी और चूड़िहारिन को सेवैयाँ कहाँ से देगी। किस-किस से मुँह चुराएगी। इसी कारण वह ईद को कोस रही है।

प्रश्न 6. 
हामिद को मेले में भेजते समय अमीना के मन में द्वन्द्व हुआ है। उसे अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर : 
गाँव के सभी बच्चे अपने-अपने पिता के साथ ईदगाह जा रहे हैं। अमीना हामिद की अकेले नहीं भेजना चाहती। अगर वह खो गया तो क्या होगा। तीन कोस चलेगा तो पैरों में छाले पड़ जायेंगे। मैं उसके साथ जाऊँगी और थोड़ी दूर पर उसे गोद ले लूँगी। तभी दूसरा विचार आता है, यदि मैं चली जाऊँगी तो यहाँ सेवैयाँ कौन पकाएगा। चीजें जमा करने में समय लगेगा। माँगे का ही भरोसा है। इस प्रकार उसके मन में एक साथ दो भाव उठे हामिद के साथ मेले में जाने का और दूसरा सेवैयाँ पकाने का। दोनों भावों ने उसके मन में द्वन्द्व पैदा कर दिया। 

प्रश्न 7. 
'अज्ञानता और नासमझी व्यक्ति को अन्धविश्वासी बना देती है।' कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
अज्ञानता अन्धविश्वास की जननी है। मोहसिन ने अपने अब्बा की बात को दुहराया। उसने कहा रात को जिन्नात आकर सारी, मिठाइयाँ खरीदकर ले जाता है और सचमुच के रुपये दे जाता है। जिन्नात के पास रुपये कहाँ से आते हैं। हामिद के ऐसा पूछने पर उसने कहा कि वह किसी भी खजाने में जा सकता है और रुपये ला सकता है। हीरे-जवाहरात तक उसके पास रहते हैं। खुश होने पर टोकरी भर जवाहरात दे दे। पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाए। वह आसमान के बराबर होता है। चौधरी साहब का उदाहरण देकर उसने हामिद को विश्वास दिलाया। जिन्नात पर विश्वास करना अन्धविश्वास ही था। हामिद ने भी उसकी बात पर विश्वास कर लिया।

प्रश्न 8. 
ईदगाह कहानी के उस स्थल का उल्लेख कीजिए, जहाँ प्रेमचंद ने व्यंग्य किया है। . उत्तर—लेखक ने पुलिस वालों पर व्यंग्य किया है। कानिसटिबिल रात को घूम-घूमकर पहरा देते हैं। मोहसिन ने बात काटी और कहा ये चोर-डाकुओं से मिले रहते हैं और चोरी कराते हैं। चोरों से चोरी करने के लिए कहते हैं और स्वयं दूसरे मुहल्ले में जाकर 'जागते रहो' की आवाज लगाते हैं। ये भ्रष्ट भी होते हैं। दूसरों से पैसा लेते हैं और आनन्द करते हैं। पर बुरे कर्म का बुरा फल भी होता है। इस प्रकार कहानीकार ने पुलिस विभाग पर करारा व्यंग्य किया है। 

प्रश्न 9. 
'कितना अपूर्व दृश्य था।' ईदगाह के नमाज स्थल का वर्णन कीजिए। 
उत्तर :
ईदगाह में इमली के घने वृक्षों की छाया में पक्के फर्श पर जाजिम बिछा है। रोजेदार एक के पीछे एक पंक्तियों में खड़े हैं। बाद में आने वाले पीछे खड़े हो जाते हैं। छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। इस्लाम की निगाह में सभी बराबर हैं। ग्रामीणों ने भी वजू किया और पीछे खड़े हो गए। व्यवस्था अच्छी थी। सभी सिजदे में साथ झुकते, साथ उठते, फिर झुकते और घुटनों के बल बैठ जाते। ये सारी सामूहिक क्रियाएँ हृदय को आकर्षित करने वाली थीं। नमाज अदा करने का वह दृश्य बड़ा ही अपूर्व था।

प्रश्न 10. 
ईदगाह के मेले की तरह आप भी अपने आस-पास के किसी मेले का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। 
उत्तर :
मेरे गाँव से दो किलोमीटर दूर प्रतिवर्ष एक मेला लगता है। राजशाही जमाने से यह मेला लग रहा है। मेले में । विशेष प्रकार की मिठाई जिसे खजला कहते हैं की दुकानें अधिक होती हैं। बच्चों को आकर्षित करने वाली खिलौनों की दुकानें भी बहुत आती हैं। कपड़ों की दुकानें सबसे अधिक लगती हैं। बच्चों का सबसे बड़ा आकर्षण झूलों और सरकस की ओर होता है। ऊँचे-ऊँचे झलों पर बच्चे और स्त्रियाँ अधिक झलते हैं। दशहरे के दिन विशेष भीड़ होती है, लगता है सारा शहर ही उमड़ पड़ा हो। 

प्रश्न 11. 
लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है।' लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
बच्चों की यह प्रवृत्ति होती है कि वे अपनी चीज किसी को नहीं देते, विशेषकर जो उन्हें सबसे अधिक प्रिय होती है। हामिद के साथियों ने भिश्ती, सिपाही, वकील और धोबिन खरीदी और उनकी विशेषता भी बताई। उनका लक्ष्य हामिद को चिढ़ाना था। वह खिलौने नहीं खरीद सकता था। वह जानता था कि ये मिट्टी के खिलौने हैं, शीघ्र टूट जायेंगे पर वह उन खिलौनों को ललचाई आँखों से देख रहा था और जरा देर के लिए हाथ में लेना भी चाहता था। पर साथी अपने नये खिलौनों को उसे नहीं देते। बच्चे अपना नया खिलौना किसी को नहीं देते। उनमें त्याग का भाव नहीं होता। 

प्रश्न 12. 
मेले में हामिद के मित्रों का व्यवहार उपेक्षापूर्ण था। उनके व्यवहार के प्रति अपना मत स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
मेले में हामिद के प्रति मित्रों का व्यवहार अशोभनीय था। मित्रों ने खिलौने खरीदे, अपने-अपने खिलौनों की प्रशंसा की-भिश्ती पानी दे जायेगा, सिपाही पहरा देगा, वकील मुकदमा लड़ेगा, धोबिन कपड़े धोयेगी। किसी ने रेवड़ी, किसी ने गुलाब-जामुन और किसी ने सोहन हलुआ खरीदा। पर किसी ने हामिद को अपनी मिठाई में से कुछ नहीं दिया। मोहसिन ने रेवड़ी के लिए हाथ बढ़ाया और जैसे ही हामिद ने हाथ बढ़ाया मोहसिन के रेवड़ी अपने मुँह में डाल ली। सभी मित्रों ने उसकी हँसी भी उड़ाई। मित्रों का यह व्यवहार अच्छा नहीं था। वह गरीब था पर उनका मित्र था और उनके साथ आया था। इसलिए उन्हें बाँटकर मिठाई खानी चाहिए थी। हामिद ललचाई दृष्टि से देखता रहा पर किसी ने उसके प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई। 

प्रश्न 13. 
हामिद विवेकी है और सहृदय भी। क्या आप इस बात से सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
चार-पाँच वर्ष के बच्चे में आगा-पीछा सोचने की बुद्धि नहीं होती, पर हामिद बच्चा होकर भी विवेकशील था। उसने सोचा खिलौने मिट्टी के हैं गिरने पर टूट जायेंगे। किताब में मिठाई की बुराई लिखी है। उसने दादी की पीड़ा को समझा। हामिद के मन में दादी के प्रति अपनत्व का भाव उत्पन्न हुआ। उसने लोहे वाले की दुकान से चिमटा खरीदा। इससे दादी की उँगलियाँ नहीं जलेंगी। स्पष्ट है कि वह अपने मित्रों की अपेक्षा बुद्धिमान और विवेकी था। उसका हृदय दूसरे की पीड़ा को समझता था। 

प्रश्न 14. 
हामिद ने अपने चिमटे की कौन-कौन सी विशेषताएं बताईं ? 
उत्तर :
हामिद के मित्र उसके चिमटे की हँसी उडाने लगे और अपने खिलौनों की प्रशंसा करने लगे। तब हामिद ने कहा तुम्हारे खिलौने मिट्टी के हैं जमीन पर गिरते ही चूर-चूर हो जायेंगे। मेरा चिमटा जमीन पर गिरकर टूटेगा नहीं। कंधे पर रखने पर यह बन्दूक लगेगा, हाथ में लेने पर फकीरों का चिमटा लगेगा, मंजीरे का काम करेगा। तुम्हारे खिलौने चिमटे के प्रहार से टूट जायेंगे, उनकी जान निकल जाएगी मेरे चिमटे का कुछ नहीं बिगड़ेगा। मेरा चिमटा रुस्तमे-हिन्द है। आग में कूदने पर भी इसका कुछ नहीं बिगड़ सकता। शेर के आगे तुम्हारे खिलौने अपने होश खो देंगे और मेरा चिमटा शेर की गरदन पर सवार होकर उसकी आँख निकाल लेगा। इन विशेषताओं को गिनाकर उसने अपने साथियों को निरुत्तर कर दिया। 

प्रश्न 15. 
चिमटा खरीदने के बाद हामिद के मन में क्या विचार आए ? 
उत्तर : 
दादी के पास चिमटा नहीं है। जब वह रोटियाँ उतारती हैं तो उनके हाथ जलते हैं। चिमटे को देखकर दादी प्रसन्न होंगी। मेरी प्रशंसा करेगी। हजारों दुआएँ देगी। पड़ोस की औरतों को दिखाएँगी। सारे गाँव में चर्चा करेंगी। खिलौनों में पैसे व्यर्थ खराब होते हैं। थोड़ी देर में टूट जायेंगे। मित्रों ने मिठाइयाँ लीं, मुझे किसी ने नहीं दी। अब मैं किसी के साथ नहीं खेलूँगा और न किसी का काम करूँगा। उनका मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुसियाँ निकलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। चिमटा कितने काम की चीज है। यही सोचकर हामिद ने चिमटा खरीदा।

प्रश्न 16. 
ईदगाह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। सिद्ध कीजिए। . 
उत्तर : 
बच्चे स्वभाव से ही मेलों के प्रति आकर्षित होते हैं। त्योहार पर खुशियाँ मनाते हैं। कहानी के प्रारम्भ में बच्चों का उल्लास और उत्सुकता को दर्शाया गया है। बच्चे ऊधमी होते हैं। वे मेले में जाते समय आम और लीचियों के पेड़ों पर कंकड़ी फेंकते हैं, माली के गाली देने पर हँसते हैं। बच्चे अपनी चीज किसी को नहीं देते और अपने खिलौनों की तारीफ करते हैं। महमूद, मोहसिन, नूरे अपने खिलौनों की तारीफ करते हैं। हामिद भी अपने चिमटे की तारीफ करता है। सभी हामिद को चिढ़ा-चिढ़ाकर मिठाई खाते हैं और उसकी हँसी उड़ाते हैं। बच्चों में अपनापन भी होता है। अपने पारिवारिकजनों के प्रति स्नेह होता है। हामिद भी स्नेह के कारण दादी के लिए चिमटा खरीदता है। अतः कह सकते हैं कि कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। 

प्रश्न 17.
ईदगाह कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
ईदगाह कहानी में दो बातों पर जोर दिया है। कहानी में निर्धन मुस्लिम समाज का वर्णन है। गरीबी के कारण सभी को गाँव के चौधरी कायम अली पर निर्भर रहना पड़ता है। त्योहार भी तभी मनता है जब चौधरी उन पर दया कर देता है। इसके साथ ही बाल स्वभाव का वर्णन भी किया है। बच्चों को बड़े-बूढ़ों की चिन्ता से कोई मतलब नहीं, उन्हें तो मेले में जाकर खिलौने खरीदना और मिठाई खानी है। हामिद का भी वर्णन है जो दादी के कष्ट को समझता है। कहानी का मुख्य उद्देश्य बाल स्वभाव का चित्रण करना है। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -

प्रश्न 1.
बच्चों में लालच एवं एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ के साथ-साथ निश्छलता भी मौजूद होती है। कहानी से कोई दो प्रसंग चुनकर इस मत की पुष्टि कीजिए। 
उत्तर :
बच्चे स्वभाव से लालची होते हैं, अपनी चीज को अच्छा बताने की होड़ होती है और वे निश्छल स्वभाव के होते हैं। इन तीन गुणों का उल्लेख इस कहानी में हुआ है। लालच ईद के मेले में हामिद के साथियों ने खिलौने लिए और मिठाइयाँ खाईं। हामिद भी ललचाई दृष्टि से उन्हें देखता रहा। वह बच्चों के खिलौनों की ओर हाथ बढ़ाता है पर साथी उसे अपना खिलौना नहीं छूने देते। बच्चे मिठाई खाते हैं, हामिद उन्हें देखता रहता है। मोहसिन उसे रेवड़ी दिखाकर चिड़ाता है और स्वयं खा जाता है। कोई उसे अपनी चीज नहीं देता। लालच के कारण बच्चे अपनी चीज़ बाँटकर नहीं खाते। 

आगे निकलने की होड़-बच्चों में होड़ की प्रवृत्ति बड़ी प्रबल होती है। वे अपनी चीज को अच्छा दूसरों की चीज को बुरा समझते हैं। ईद के मेले में बच्चों ने खिलौने खरीदे और हामिद ने चिमटा खरीदा। सब अपने सिपाही, वकील और खंजरी की तारीफ करते हैं और हामिद के चिमटे को बुरा बताते हैं। हामिद मिट्टी के खिलौनों को टूटने वाला, खंजरी को पानी से खराब होने वाली बताता है। अपने चिमटे को आग, पानी, आँधी और तूफान में डटने वाला बताकर श्रेष्ठ सिद्ध करता है।

निश्छलता-बच्चे स्वभाव से निश्छल होते हैं। उन्हें जैसा समझा दो वे मान जाते हैं। अमीना ने भी हामिद को बता दिया था कि अब्बाजान पैसे कमाने गए हैं। पैसों की ढेर सारी थैलियाँ लेकर आयेंगे। अम्मीजान खुदा के घर से अच्छी-अच्छी चीज लेकर आयेंगी। बच्चे हामिद ने दादी की बात को सत्य मान लिया। यह बच्चे की निश्छलता का ही प्रमाण है।

प्रश्न 2. 
'प्रेमचंद की भाषा बहुत सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है।' कहानी के आधार पर इस कथन की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
प्रेमचंद का भाषा पर असाधारण अधिकार है। उनकी भाषा कठिन और संस्कृतनिष्ठ नहीं है। वह सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण और मुहावरेदार है। उनकी भाषा जन साधारण की बोलचाल की भाषा है। पानी में जिस प्रकार पत्ते बहकर आ जाते हैं, उसी प्रकार उनकी भाषा में मुहावरें भावों के साथ बहते चले आए हैं। उन्हें जीवन का बहुत अनुभव था, इसी कारण भाषा में सजीवता है। आँख बदलना, सिर पर सवार होना, पैरों में पंख लगना, गर्दन पर सवार होना, राई का पर्वत बनाना जैसे अनेकों मुहावरे सहज में ही प्रयुक्त हो गए हैं। एक सरल उदाहरण इस प्रकार है..."आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं।" उनकी भाषा में देशज, तद्भव, तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा पात्रानुकूल है। उर्दू बोलने वाले पात्र से वैसी ही भाषा बुलवाई है। जैसे - 'अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से बड़ी-बड़ी अच्छी चीजें लेने गई हैं।' इससे स्पष्ट है कि प्रेमचंद की भाषा सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल की है। 

प्रश्न 3. 
हामिद के चरित्र की कोई तीन विशेषताएँ बताइए। 
उत्तर : 
हामिद कहानी का मुख्य पात्र है, नायक है। कहानीकार ने उसके चरित्र को निखारने के लिए उसकी कई विशेषताएँ बताई हैं, उनमें से मुख्य तीन विशेषताएँ निम्न हैं - 

गील-हामिद - चार-पाँच वर्ष का है पर उसमें बच्चों की सी लडने-झगडने की प्रवत्ति नहीं है। साथी मिठाई खाते समय उसे चिढ़ाते हैं। मोहसिन रेवड़ी देने के लिए बुलाता है और स्वयं खा जाता है। महमूद गुलाब जामुन देने को बुलाता है। इस प्रकार साथी उसकी उपेक्षा करते हैं, हँसी उड़ाते हैं पर वह उनसे झगड़ता नहीं। दुकानों पर खिलौने और मिठाइयाँ देखकर उसका मन ललचाता नहीं। वह सहनशील है, धैर्य के साथ सब देखता रहता है। 

तार्किक साथी - अपने-अपने खिलौनों की तारीफ करते हैं पर वह तर्क देकर सबको निरुत्तर कर देता है। खिलौने टूट जायेंगे, चिमटा खंजरी का पेट फाड़ सकता है। पानी पड़ने पर खंजरी खत्म हो जाएगी। मेरा चिमटा शेर है। आग, पानी, आँधी और तूफान में डटा रहेगा। शेर की गरदन पर सवार होकर उसकी आँख निकाल लेगा। इन तर्कों से उसने सब साथियों को परास्त कर दिया। 

विवेकशील - छोटी उम्र का बालक हामिद विवेकशील है। वह समझता है कि पैसों को कैसे खर्च किया जाए और चीज अधिक उपयोगी है। वह चाहता तो अन्य बच्चों की तरह मिठाई और खिलौनों पर पैसे खर्च कर देता। किन्तु वह अपनी दादी के कष्ट को जानता था। इसलिए उसने सोच-समझकर चिमटा ही खरीदा। 

प्रश्न 4. 
हामिद के अतिरिक्त इस कहानी के किस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया और क्यों ? 
उत्तर :
'ईदगाह' कहानी में हामिद के बाद सबसे महत्वपूर्ण पात्र अमीना है। उसका धैर्य, सहनशीलता और त्याग पाठक के हृदय को छू जाता है। पुत्र और पुत्रवधू की मृत्यु के बाद हामिद के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उसके कन्धों पर आ जाती है। वह लोगों के कपड़े सिलकर अपना और अपने पोते हामिद का पेट भरती है। वह बच्चे को खुश करने के लिए असत्य बोलती है। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसे ईद के दिन सेवैयाँ बनाने की चिन्ता है। धोबिन, नाइन, मेहतरानी और चूड़िहारिन सभी त्योहार पर आएँगी वह उन्हें सेवैयाँ कहाँ से देगी। किस-किस से मुँह चुराएगी। साल भर का त्योहार है। हामिद की भलाई की कामना करती है। वह एक आदर्श और प्रेरणादायक पात्र है। 

प्रश्न 5. 
'ईदगाह' कहानी के शीर्षक का औचित्य सिद्ध कीजिए। क्या.इस कहानी को कोई अन्य शीर्षक दिया जा सकता है? 
उत्तर :
किसी रचना का शीर्षक मुख्य पात्र, मुख्य घटना, मुख्य भाव और स्थान के आधार पर रखा जाता है। प्रस्तुत कहानी का शीर्षक बहुत उपयुक्त है। 

क्योंकि - 

  1. यह एक शब्द का शीर्षक है।
  2. शीर्षक स्थान के आधार पर रखा गया है।
  3. सारा कथानक 'ईदगाह' के चारों ओर घूमता है। 
  4. शार्षक से ईदगाह के मेले का तथा नमाज अदा करने वालों की आस्था का पता लगता है। 
  5. शीर्षक कौतूहलपूर्ण, छोटा और मौलिक है।

कहानी का दूसरा शीर्षक 'हामिद' भी रखा जा सकता है क्योंकि यह कहानी का मुख्य पात्र है। हामिद की भावना के आधार पर 'हामिद का चिमटा' भी रखा जा सकता है। लेकिन उपयुक्त शीर्षक 'हामिद' ही रहेगा। 

प्रश्न 6. 
'ईदगाह' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर : 
रमजान के तीस रोजे बीतने के बाद ईद का दिन आया है। पूरे गाँव में चहल-पहल है। सभी ईदगाह जाकर नमाज अदा करना चाहते हैं। ईदगाह गाँव से तीन कोस की दूरी पर है। वहाँ तक पैदल जाना और आना होगा। अतः सभी जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा रहे हैं। बच्चों को ईद की ज्यादा खुशी है। वे सभी जल्दी ईदगाह जाना चाहते हैं, वे अपने पैसों को बार-बार गिनकर जेब में रख रहे हैं, महमद के पास बारह, मोहसिन के पास पन्द्रह और हामिद के पास केवल तीन ही पैसे हैं। हामिद के माता-पिता नहीं है। 

वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के पास रहता है। अमीना हामिद को अकेले ईदगाह भेजने से डर रही है कि कहीं हामिद मेले में खो न जाए। साथ ही उसे ईद की तैयारियाँ करने व सभी कामवालियों को देने के लिए सेवैयों का इंतजाम करने की भी चिन्ता है। हामिद अपनी दादी अमीना को अपना ख्याल रखने का विश्वास दिलाकर सभी बच्चों के साथ ईदगाह के लिए चल पड़ता है। सभी बच्चे मार्ग में पड़ने वाली इमारतों के विषय में चर्चा करते हैं।

  तभी ईदगाह दिखाई पड़ता है। उसके ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है। नीचे फर्श पर जाजिम बिछा हुआ है। सेजेदार नमाज पढ़ने के लिए उस पर कतारों पर खड़े हुए हैं। ग्रामीण भी वजू करके नमाज अदा करने के लिए पंक्तियों में पीछे की ओर खड़े हो जाते हैं। नमाज शुरू होती है, लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुकते हैं। सभी एक साथ खड़े होते हैं फिर एक ही साथ घुटनों के बल बैठे जाते हैं। यह दृश्य देखने में अत्यन्त सुन्दर लगता है। यह सामूहिक नमाज भाईचारा पैदा करती है।

नमाज खत्म होने पर सभी गले मिलते हैं और बच्चे मेले की ओर दौड़ पड़ते हैं। मोहसिन, महमूद, नूरे और सम्मी लकड़ी के बने ऊँट और घोड़ों वाले झूले पर झूलते हैं। मिठाइयाँ खरीदकर खाते हैं और अपनी-अपनी पसंद के खिलौने खरीदते हैं, वे सभी हामिद को बहुत चिढ़ाते हैं, किन्तु हामिद न झूले झूलता है न मिठाइयाँ खाता है और न ही खिलौने खरीदता है क्योंकि उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं। वह उन पैसों से कोई उपयोगी वस्तु लेना चाहता था। 

वह मन ही मन ललचाता है फिर भी खिलौने और मिठाइयों की बुराइयाँ करता है। अतः हामिद लोहे के सामान वाली दुकान पर चिमटा देखकर उसे अपनी बूढ़ी दादी की रोटी सेकते समय आग से जलती उँगलियों का ध्यान आता है। वह दुकानदार से तीन पैसों में एक चिमटा खरीदता है। उसके हाथ में चिमटा देखकर सभी साथी उसका मजाक उड़ाते हैं लेकिन अपने तर्क से वह उन सभी को निरुत्तर कर देता है। वह अपने चिमटे को 'रुस्तम-ए-हिन्द' की उपाधि देता है। 

हामिद के तर्कों से प्रभावित होकर सभी बच्चे उसके चिमटे के बदले अपने खिलौने उसे थोड़ी देर के लिए देने को तैयार हो जाते हैं। ग्यारह बजे तक सभी गाँव वापस लौट आये। बच्चों ने खेलकर थोड़ी देर में ही अपने-अपने खिलौने तोड़ डाले। अमीना हामिद को गोद में लेकर उसे दुलारने लगती है, लेकिन उसके हाथ में खिलौनों की जगह चिमटा देखकर क्रोध करने लगती है। जब हामिद उससे कहता है कि रोटी सेंकते समय उसकी उँगलियाँ आग में जल जाती थीं।

इसलिए उसकी उँगलियों को आग से बचाने के लिए उसने यह चिमटा खरीदा। यह सुनकर अमीना का क्रोध शांत हो जाता है और उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं। वह हामिद के भोलेपन और असीम स्नेह को देखकर रोने लग जाती है और हामिद को हजारों दुआएँ देती है और बेचारा भोला हामिद इस रहस्य को समझ नहीं पाता। 

प्रश्न 7. 
प्रेमचन्द का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्य सेवा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। 
उत्तर : 
जीवन-परिचय - मुंशी प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 ई. में वाराणसी के लमही नामक गाँव में हुआ था। आपका वास्तविक नाम धनपतराय था। आप कायस्थ जाति के थे। प्रेमचन्द जब 8 वर्ष के थे तब उनकी माता का तथा जब सोलह वर्ष के थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया था। पन्द्रह वर्ष की उम्र में आपका विवाह हुआ। किन्तु जमींदार परिवार की उनकी पत्नी उनको छोड़कर मायके चली गई और पुनः कभी नहीं लौटी। तब प्रेमचंद ने शिवरानी देवी नामक बाल विधवा स्त्री से दूसरा विवाह किया। 

प्रेमचंद ने क्वींस कॉलेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। सन् 1910 में इण्टर तथा सन् 1919 में बी. ए. की परीक्षाएँ पास की। आप शिक्षा विभाग में सब डिप्टी इंस्पैक्टर रहे। सन 1920 में गाँधी जी के होकर आपने सरकारी नौकरी छोड़ दी और साहित्य सेवा का अपना ध्येय बना लिया। 8 अक्टूबर, सन 1936 को आपका देहावसान हो गया। 

साहित्यिक परिचय - पहले आप उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। उनके कहानी संग्रह 'सोजेवतन को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात् आप हिन्दी में आए और प्रेमचन्द नाम से लिखने लगे। उनकी पहली कहानी 'पंच परमेश्वर', 'सरस्वती-पत्रिका' में छपी थी। आपने लगभग 300 कहानियाँ तथा आठ उपन्यास लिखे। 'गोदान' उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। प्रेमचन्द के कथा साहित्य में भारतीय जीवन का सफल चित्रण हुआ है। दलितों, किसानों, मजदूरों तथा महिलाओं की पीड़ा उनमें मुखरित हुई है।

उनके कथा-साहित्य का फलक अत्यंत व्यापक है। आप प्रगतिवादी विचारधारा के कथाकार हैं तथा गाँधीवाद से प्रभावित है, कथा-साहित्य को जासूसी तथा तिलिस्म की दुनिया से निकलकर उसे समाज की यथार्थ समस्याओं तक ले जाने का श्रेय प्रेमचन्द को है। आपकी भाषा सरल, विषयानुरूप तथा पाठकों के समझ में आने वाली है। उसमें मुहावरे तथा लोकोक्तियों का प्रयोग सफलतापूर्वक हआ है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी तथा लोकभाषा के शब्द उसमें मिलते हैं। आपने वर्णनात्मक शैली, विवरणात्मक शैली तथा संवाद शैली का प्रयोग किया है। 

कृतियाँ - मानसरोवर (आठ भाग) तथा गुप्तधन (दो भाग) नामक कहानी संग्रहों में आपकी लगभग 300 कहानियाँ संग्रहीत हैं। आपने सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि उपन्यासों की रचना की है। 
आपने तीन नाटक कर्बला, संग्राम तथा प्रेम की वेदी लिखे हैं। आपका निबन्ध-संग्रह 'विविध प्रसंग कुछ विचार' है।

ईदगाह Summary in Hindi 

लेखक परिचय - प्रेमचंद का जन्म 1880 ई. में वाराणसी जनपद के लमही ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी अजायबलाल और माता का नाम आनन्दी देवी था। 

प्रेमचंद हिन्दी जगत में उपन्यास सम्राट् के नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रेमचंद प्रारम्भ में उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे। इनका प्रथम कहानी संग्रह 'सोजे वतन' था जिसे अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। इसके बाद आपने हिन्दी में प्रेमचंद नाम से लिखना आरम्भ किया। उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध आदि अनेक विधाओं में साहित्य सृजन का कार्य किया। आपने छुआछूत, विधवा विवाह, साम्प्रदायिक भावना, कृषकों की समस्या, ग्राम सुधार, जमींदारी प्रथा, पुलिस के हथकण्डे आदि तात्कालिक समस्याओं का अपने उपन्यास और कहानियों में मार्मिक चित्रण किया है। 

प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास को मानव जीवन से जोड़ने का प्रशंसनीय प्रयास किया। आपकी कहानियाँ आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद पर आधारित हैं। प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज भावानुकूल एवं प्रवाहपूर्ण है। उनकी भाषा में लोकोक्ति एवं मुहावरों का सहज रूप से प्रयोग हुआ है। उर्दू व अंग्रेजी के शब्द भी आपकी भाषा में मिलते हैं। आपने वर्णनात्मक शैली, संवाद शैली, विवरणात्मक शैली तथा मनोविश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग अपने साहित्य में किया है।। 

रचनाएँ - मानसरोवर (आठ भाग) और गुप्त धन (दो भाग) उनके कहानी संग्रह हैं। निर्मला, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि, प्रेमाश्रम, गबन, गोदान, कायाकल्प उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी नाटक हैं। 'विविध प्रसंग' और 'कुछ विचार' निबन्ध संग्रह हैं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया। 

पाठ परिचय :

ईदगाह 'प्रेमचंद' द्वारा रचित बाल मनोविज्ञान पर केंद्रित कहानी है। यह कहानी उत्साह से युक्त त्योहार ईद को केंद्र में रखकर लिखी गई है। इस कहानी में प्रेमचंद जी ने ग्रामीण मुस्लिम जीवन को बहुत ही सरल तथा सुरुचिपूर्ण ढंग से रेखांकित किया है। यह एक छोटे बच्चे पर आधारित कथा है, जो ईद के समय ईदगाह जाता है। उसकी दादी उसे कुछ पैसे देती है जिससे वह उनसे मेले में कुछ खा-पी सके। परन्तु वह उन पैसों से खाने के स्थान पर अपनी दादी के लिए एक चिमटा खरीद लेता है।

  कहानी का सारांश :

ईद और उत्साह - कहानी का आरम्भ ईद के त्योहार से हुआ है। सारा वातावरण आनन्दमय है। सभी ईदगाह जाने की तैयारी में जुटे हैं। बच्चों में अजीब उत्साह है। कोई कुरता ठीक कर रहा है तो कोई जूतों में तेल लगा रहा है। कोई शीघ्रता से बैलों को सानी-पानी दे रहा है। बच्चों को गृहस्थी की कोई चिन्ता नहीं। वे तो जल्दी से जल्दी ईदगाह जाना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि लोग जल्दी ईदगाह क्यों नहीं चलते। बच्चे पैसों को गिनते हैं और पुनः जेब में रख लेते हैं।

भोला हामिद - माता-पिता विहीन चार-पांच साल का हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और प्रसन्न। रहता है। दादी अमीना ने उसे बता रखा है कि उसके अब्बाजान रुपये कमाने गए हैं और बहुत-सी थैलियाँ लाएँगे। अम्मीजान अल्लाहमियाँ के घर से उसके लिए अच्छी चीजें लेने गई हैं। भोला हामिद क्या जाने कि उसके माता-पिता उसे हमेशा के लिए अकेला छोडकर स्वर्ग सिधार गए हैं। वह तो दादी की बातों को सनकर प्रसन्न है। सोचता है अब्बाजान थैली भरकर रुपये लायेंगे और वह अपने लिए जूते-टोपी खरीदेगा। इसी आशा में वह प्रसन्न है। सोचता है महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी से उसके पास पैसे अधिक होंगे। वह दादी अमीना से अपने शीघ्र लौटने की बात कहता है। 

अमीना की व्यथा - ईद का त्योहार सभी के लिए ढेरों खुशियाँ लेकर आया है, पर अमीना के जीवन से सुख कोसों दूर चला गया है। उसकी आँखों के आँसू रुक नहीं रहे हैं। अल्लाह ने उसके पुत्र आबिद को उससे छीन लिया। अभाव के कारण आज घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है। वह मन ही मन ईद के त्योहार को कोसती है। अमीना का दिल कचोट रहा है। गाँव के सभी बच्चे अपने पिता के साथ जायेंगे, अभागा हामिद किसके साथ जायेगा। अकेला बच्चा कहीं खो न जाये। वह बच्चे के साथ जाना चाहती है लेकिन सेवैयाँ कौन पकाएगा। धोबिन, नाइन, मेहतरानी और चूड़िहारिन को क्या देगी। उसके पास तो पाँच पैसे ही हैं। इसी चिन्ता में वह अकेली कोठरी में बैठी रो रही है। 

मार्ग का दृश्य और बच्चे - मार्ग में सड़क के दोनों ओर आमों के बगीचे थे। पेड़ों में आम और लीचियाँ लगी थीं। बड़ी-बड़ी इमारतें थीं। अदालत और कॉलेज थे। हलवाइयों की दुकानें सजी थीं। आम और लीचियों को देखकर बच्चे शरारत करते। कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर मारता। माली अन्दर से गाली देता हुआ निकलता। माली के गाली देने पर बच्चे दूर खड़े होकर हँसते। शरारत करते हुए बच्चे आगे निकल जाते। कभी पेड़ के नीचे खड़े होकर पीछे रहने वालों का इन्तजार करते। हामिद के पैरों में तो पर ही लग गए थे। 

इंदगाह का दृश्य - बच्चे सबके साथं ईदगाह पहुँचे। ऊपर वृक्षों की घनी छाया थी। नीचे पक्के फर्श पर जाजिम बिछा था। इक्के-ताँगे तथा मोटरों पर सवार टोलियाँ ईदगाह आ रही थीं, जिनके वस्त्र बड़े भड़कीले थे। ग्रामीणों को अपनी विपन्नता का ध्यान ही नहीं था। रोजेदारों की लम्बी पंक्तियाँ थीं, बाद में आने वाले पीछे खड़े हो जाते। पद और धन के कारण कोई बड़ा-छोटा नहीं था। इस्लाम की निगाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं है, सब बराबर हैं। 

बाल स्वभाव और स्पर्धा - बच्चों का खिलौनों के प्रति अधिक झुकाव रहता है। मिठाई के प्रति भी अधिक रुचि होती है। ईदगाह के मेले में खिलौनों की दुकानों को देखकर हामिद के साथ खिलौने खरीदने लगे। महमूद ने सिपाही, मोहसिन ने भिश्ती और नूरे ने वकील खरीदा। उसके साथियों ने खाने की चीजें खरीदी और खाई। सबने हामिद का मजाक भी उड़ाया। अपने-अपने खिलौनों की तारीफ की। हामिद के पास केवल तीन पैसे थे। उसने अपनी दादी के कष्ट को ध्यान में रखकर चिमटा खरीदा। उसने यह सिद्ध कर दिया कि खिलौनों से चिमटा अधिक अच्छा और उपयोगी है। सभी साथी अपने खिलौने हामिद के हाथ में देते हैं और उसका चिमटा देखते हैं। बच्चे घर जाकर खिलौने दिखाते हैं और हामिद दादी को चिमटा देता है। 

अमीना का वात्सल्य - मेले से लौटने पर अमीना ने हामिद को गोदी में उठाकर प्यार किया पर उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंक गई। चिमटा देखकर उसे दुःख हुआ और आश्चर्य भी। हामिद ने दोपहर में कुछ नहीं खाया, यह सोचकर उसे दुःख हुआ। हामिद की बात सुनकर अमीना का हृदय गदगद हो गया। हामिद के सद्भाव और स्नेह को देखकर वह रोती रही और उसे दुआएँ देती रही। 

कठिन शब्दार्थ :

  • रमजान = मुस्लिम कैलेंडर के एक महीने का नाम। 
  • रोजा = व्रत, उपवास। 
  • रौनक = शोभा। 
  • अजीब = अनोखी। 
  • ईदगाह = जहाँ ईद पर सामूहिक नमाज पढ़ी जाती है। 
  • प्रयोजन = मतलब। 
  • बला = मुसीबत, कष्ट, आपत्ति। 
  • बदहवास = घबराना, होश-हवास ठीक न होना। 
  • मुहर्रम = मातम का त्योहार (यह शब्द ईद का विरोधी है क्योंकि ईद खुशियों का त्योहार है।)।
  • नियामतें = दुआएँ आशीर्वाद। 
  • निगोड़ी = अभागी, निराश्रय, जिसका कोई न हो। 
  • विपत्ति = संकट। 
  • चितवन = किसी की ओर देखने का ढंग, दृष्टि, कटाक्ष। 
  • विध्वंस = विनाश। 
  • ईमान की तरह बचाना = बहुत संभालकर रखना। 
  • ग्वालन = दूध वाली। 
  • बिसात = औकात, सामर्थ्य। 
  • आँख नहीं लगना = पसंद न आना।
  • खैरियत = राजी-खुशी। 
  • पर लगना = तेज चलना। 
  • दामन = किनारा। 
  • तीन कौड़ी के = नगण्य, व्यर्थ।
  • लुढ़कना = गिर जाना। 
  • जिन्नात = भूत-प्रेत। 
  • बछवा = बछड़ा। 
  • हैरान होना = परेशान होना। 
  • झक मारकर = हार मानकर।
  • मवेशीखाना = जहाँ लावारिस पशुओं को पकड़कर बंद कर देते हैं, पशुओं का बाड़ा। 
  • जहान = दुनिया, विश्व। 
  • कानिसटिबिल = सिपाही। 
  • कवायद = ड्रिल, परेड। 
  • रैटन = राइट टर्न (दायें मुड़)। 
  • प्रतिवाद = विरोध। 
  • नादानी = नासमझी, मूर्खता।
  • हराम का माल = बेईमानी की कमाई। 
  • लेई पूँजी = जोड़ी हुई सम्पत्तिा 
  • विपन्नता = गरीबी। 
  • बेखबर = अनजान। 
  • चेतना = सावधान। 
  • जाजिम = नमाज पढ़ने के लिए बिछाई जाने वाली दरी, कालीन। 
  • वजू = नमाज पढ़ने से पहले यथाविधि हाथ-पाँव और मुँह धोना। 
  • सजदा = माथा टेकना, खुदा के आगे सिर झुकाना। 
  • प्रदीप्ति होना = चमकना, जलना। 
  • हिंडौला = झूला। 
  • ची = वृत्ताकार झुलाने वाला झूला। 
  • मशक = चमड़े का बड़ा थैला जिसमें पानी भरा जाता है। 
  • पोथा = मोटी पुस्तक। 
  • जिरह = तर्क। 
  • फैर = फायर। 
  • निंदा = बुराई। 
  • अनायास = बिना प्रयास के। 
  • नेमत = कृपा। 
  • सबील = धर्मार्थ लगाई गई प्याऊ। 
  • जबान = जीभ। 
  • मिजाज = नखरा। 
  • सलूक = व्यवहार। 
  • घुड़की = धमकी भरी डाँट-फटकार। 
  • खंजरी = डफली। 
  • मोहित = आकर्षित। 
  • विधर्मी होना = दूसरे अर्थात् विरोधी पक्ष में मिल जाना।
  • आघात = प्रहार, चोट। 
  • फौलाद = स्टील, मजबूत। 
  • अजेय = जिसे जीता न जा सके। 
  • रुस्तमे हिन्द = बहादुर, भारत का सर्वश्रेष्ठ पहलवान। 
  • एड़ी-चोटी का जोर लगाना = पूरा प्रयास करना। 
  • कुमक = सेना। 
  • पैरों-पड़ना = विनती या प्रार्थना करना। 
  • लाजबाव = उत्तर देने में असमर्थ, निरन्तर। 
  • सूरमा = योद्धा। 
  • धेलचा कनकौआ = दो पैसे वाली सस्ती पतंग। 
  • गंडा = चार आना, कीमत। 
  • पेश करना = प्रस्तुत करना। 
  • दिलासा = समझाना, विश्वास दिलाना। 
  • प्रसाद = दया, कृपा। 
  • स्वर्गलोक सिधारना = मृत्यु होना, नष्ट हो जाना। 
  • मृत्यु लोक = इहलोक, धरती। 
  • घूरा = कूड़ा। 
  • विकार = कमी, खराबी। 
  • शल्यक्रिया = ऑपरेशन, चीर-फाड़ करना। 
  • रूपान्तर = परिवर्तन। 
  • छाती पीटना = पछताना। 
  • बेसमझ = नादान, मूर्ख। 
  • स्नेह = प्रेम। 
  • प्रगल्भ = वाक्पटु। 
  • जब्त = सहन करना। 
  • दामन = आँचल, पल्लू। 

महत्वपूर्ण मद्याशों की सप्रसंग व्याख्याएँ - 

1. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो कितना प्यारा, कितना शीतल है मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। 

संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' शीर्षक कहानी से उद्धत है। इसके लेखक कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द हैं। प्रस्तुत गद्यांश में ईद की प्रातः का मनोरम वर्णन किया है। 

व्याख्या - तीस रोजों के बाद ईद आई है। बालक और वृद्ध सभी प्रसन्न हैं। ईद के दिन प्रकृति भी प्रसन्न दिखाई दे रही । है। प्रभात की सुनहरी किरणें चारों ओर बिखर रही हैं। सभी को प्रातः का दृश्य मनोहर और सुहावना लग रहा है। प्रभात की। किरणें वृक्षों और खेतों पर पड़ रही हैं। वृक्षों की हरियाली अन्य दिनों की अपेक्षा अजीब दिखाई दे रही है। सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर खेतों की शोभा अनूठी दिख रही है। सुनहरी किरणों के कारण आसमान में अजीब लालिमा है। सूर्य ने भी अपनी तीक्ष्णता छोड़कर शीतलता धारण कर ली है। आज वह अधिक प्यारा लग रहा है। लोगों को ऐसा लगता है मानो सूर्य भी ईद की बधाई देने आया है। सभी को प्रात:कालीन शोभा सुहावनी लग रही है। 

विशेष : 

  • प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण है। 
  • प्रकृति का सजीव और चित्रोपम वर्णन है। 
  • भाषा में अलंकार की 'छटा है।
  • प्रकृति मनोनुकूल दिखाई देती है। 
  • भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।

2. लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं; लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज़ है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायम अली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो सारी ईद मुहर्रम हो जाए। 

सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। उपर्युक्त गद्यांश के अन्तर्गत लेखक ने गाँव के बच्चों व बड़ों में ईदगाह जाने के उत्साह का वर्णन किया है। 

व्याख्या - लेखक कहते हैं कि ईद के अवसर पर लड़के सबसे अधिक उत्साहित दिखाई दे रहे हैं। इनमें से किसी ने एक दिन का रोजा रखा है। वह भी केवल दोपहर तक के लिए। ज्यादातर बच्चों ने रोजा रखा ही नहीं है। इन सभी की प्रसन्नता का कारण रोजा नहीं अपितु ईद के त्योहार पर ईदगाह जाना है। रोजा रखना बड़े-बूड़ों का काम है। ईद का त्योहार तो प्रसन्नता देने वाला है। सभी को ईदगाह जाने की जल्दी है। वे बड़ों के जल्दी ईदगाह न चलने पर परेशान हो रहे हैं। बड़ों को घर-गृहस्थी की चिन्ता है किन्तु बच्चों को इससे कोई मतलब नहीं है कि उनके खाने के लिए सेवइयाँ का इंतजाम करने के लिए उनके पिता कितने परेशान हैं। वे चौधरी कायम अली के घर ईद का त्योहार मनाने के लिए कुछ रुपये माँगने के लिए गए हैं। अगर चौधरी पैसा देने से मना कर दे तो ईद के त्योहार की यह खुशी मुहर्रम के मातम में बदल जायेगी। बच्चे यह नहीं जानते कि बिना पैसों के सारा त्योहार फीका हो जायेगा। 

विशेष :  

  • बच्चों की प्रसन्नता एवं ईदगाह जल्दी जाने की बेचैनी का वर्णन। 
  • ग्रामीणों की निर्धनता की ओर संकेत। 
  • सरल, सुबोध एवं मुहावरेदार भाषा। 
  • वर्णनात्मक एवं विवरणात्मक शैली। 

3. आशा तो बड़ी चीज़ है और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद के पाँव में जते नहीं हैं, सिर पर एक फटी-परानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी, तो दिल के अरमान निकाल लेगा।

सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचन्द की 'ईदगाह' कहानी से लिया गया है। कहानी के नायक हामिद के माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी है। उसकी दादी ने उसे बताया हुआ है कि उसके माता-पिता अल्लाह के पास उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लेने गए हैं। हामिद की आशा इतनी दृढ़ है कि उसके माता-पिता के अल्लाह के पास से लौटने पर उसके सभी कष्ट दूर हो जाएँगे। 

व्याख्या - लेखक कहते हैं कि आशा मनुष्य के मन की महत्वपूर्ण भावना है। जिसके बल पर वह कष्टपूर्ण जीवन भी सरलता से काट लेता है। बच्चों के मन में आशा की भावना अधिक बलवती (मजबूत) होती है। बच्चे कल्पनाशील होते हैं। वे अपनी कल्पना के आधार पर बहुत बड़ी बातें सोच लेते हैं। हामिद के माता-पिता नहीं हैं। परिवार में आमदनी का कोई जरिया न होने के कारण निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहा है। उसके पास ईद पर पहनने के लिए न नए कपड़े हैं और न ही पैरों में पहनने के लिए जूते हैं। उसके सिर पर एक पुरानी टोपी है जिसका गोटा काला पड़ गया है। फिर भी हामिद प्रसन्न है। उसे आशा है कि उसकी सभी परेशानियाँ जल्दी ही दूर हो जाएँगी। उसके पिता उसके लिए थैलियों में भरकर पैसे लाएँगे। उसकी माँ ईश्वर के आशीर्वाद के रूप में उसके लिए अनेक चीजें लेकर आएँगी। तब उसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं होगी। उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जायेंगी। 

विशेष :  

  • आशा के महत्त्व को दर्शाया गया है।
  • बच्चों की कल्पनाशीलता का वर्णन। 
  • भाषा सरल, सुबोध, मुहावरेदार एवं उर्दू के शब्दों से पूर्ण। 
  • विवरणात्मक शैली। 

4. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती ओर चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डबी जा ने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंद भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी। 

सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित 'ईदगाह' कहानी से लिया गया है। इसके लेखक प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द हैं। उपर्युक्त गद्यांश में हामिद की दादी अमीना की चिन्ता और दुःख का वर्णन है। वह इस बात से दु:खी है कि वह पैसों के अभाव में ईद का त्योहार कैसे मनायेगी ? 

व्याख्या - लेखक कहता है कि बेचारी अमीना अपने दुर्भाग्य पर अपनी कोठरी में बैठकर आँसू बहा रही है। ईद का त्योहार है और उसके घर में अनाज का एक दाना भी नहीं। ऐसी स्थिति में वह ईद का त्योहार कैसे मनाएगी ? यदि आज उसका पुत्र आबिद जिन्दा होता तो उसकी ईद इतनी बेरंग और उदास नहीं होती। आबिद, ईद से पहले ही सारा इंतजाम कर देता। उसे ऐसी निराशा का सामना नहीं करना पड़ता। वह बहुत च्याकुल और निराश थी। वह परेशान होकर सोच रही थी कि यह ईद आई ही क्यों ? इसके विपरीत हामिद के मन में अपार उत्साह, उमंग और आशा थी। अपनी इसी आशा के बल पर वह किसी भी संकट का सामना करने का सामर्थ्य रखता था। 

विशेष :  

  • अमीना के मन की निराशा और व्याकुलता का प्रभावशाली चित्रण। 
  • हामिद की आशा इतनी बलवती है कि वह किसी भी संकट का सामना कर सकने का सामर्थ्य रखता है। 
  • भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण एवं सुबोध। 
  • उर्दू तथा लोकजीवन के शब्दों का प्रयोग। 
  • विचारात्मक और मनो-विश्लेषणात्मक शैली।

5. उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए, लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गई तो क्या करती! हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बचे रहे हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में, पाँच अमीना के बटुवे में। यही तो बिसात है और ईद का त्योहार, अल्लाह ही बेड़ा पार लगाए। धोबन, नाइन, मेहतरानी और चूड़िहारिन सभी तो आएंगी। सभी को सेवैयाँ चाहिए और थोड़ा किसी की आँखों नहीं लगता। किस-किस से मुँहचुराएगी। और मुँहक्यों चुराए? साल-भर का त्योहार है। जिंदगी खैरियत से रहे, उनकी तकदीर भी तो उसकी के साथ है। बच्चे को खुदा सलामत रखे, दिन भी कट जाएँगे। 

सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' नामक कहानी से ली गई हैं। इसके लेखक प्रसिद्ध कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द हैं। प्रस्तुत गद्यांश के अन्तर्गत लेखक ने अमीना की निर्धनता का मार्मिक चित्रण किया है। 

व्याख्या - हामिद की दादी अमीना एक गरीब महिला है। उसका इकलौता पुत्र आबिद पिछले वर्ष हैजे की बीमारी के कारण चल बसा था। वह अपने पोते हामिद का पालन-पोषण बहुत ही कठिनाई से सिलाई करके करती थी। फहीमन के कपड़े सिलने पर उसे आठ आने सिलाई के मिले थे, जिन्हें वह ईद के त्योहार के लिए बचाकर रखे हुई थी। लेकिन ईद से एक दिन पहले ही दूधवाली पैसों के लिए तगादा करने लगी तो उसका हिसाब करना पड़ा। 

जिस अठन्नी को अमीना सहेजकर रखे हुई थी, अब ग्वालिन को पैसे देने के बाद उसके पास केवल दो आने ही शेष बचे थे, जिसमें से उसने तीन पैसे हामिद को ईद के मेले के लिए दे दिए थे और शेष बचे पाँच पैसों से वह सेवइयों की जुगाड़ कर रही थी। अपनी कोठरी में वह अल्लाह से दुआ कर रही थी कि वह ही उसका बेड़ा पार लगाए। त्योहार पर सभी कामवालियों को सेवइयाँ देनी पड़ेंगी। 

फिर चाहे वह धोबिन हो या नाइन, जमादारिन हो या चूड़ीवाली। जरा-सी सेवइयों से इनका काम नहीं चलेगा, सब मुँह फुला लेंगी और फिर त्योहार रोज-रोज थोड़े ही आते हैं। ये बेचारी भी तो त्योहार पर आस लगाए रहती हैं। इनकी तकदीर भी तो इन त्योहारों के साथ बँधी रहती है। बस मेरा पोता खैरियत से रहे, अल्लाह उसे सही-सलामत रखे, गरीबी के ये दिन भी कट ही जाएँगे।

विशेष :

  • अमीना की चिन्ता का सीधा वर्णन। 
  • त्योहार गरीबों के लिए कभी आनन्ददायक नहीं होते। 
  • गरीबों के पीड़ा भरे जीवन का सजीव वर्णन। 
  • प्रवाहपूर्ण, मुहावरेदार और विषयानुकूल भाषा।
  • मनोविश्लेषणात्मक शैली।

6. मोहसिन ने प्रतिवाद किया-यह कानिसटिबिल पहरा देते हैं! तभी तुम बहुत जानते हो। अजी हज़रत, यह चोरी कराते हैं। शहर के जितने चोर-डाकूहैं,सब इनसे मिलें रहते हैं। रात को येलोगचोरों सेतो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर 'जागते रहो! जागते रहो!'पुकारते हैं। जभी इन लोगों के पास इतने रुपये आते हैं। मेरे मा एक' थाने में कानिसटिबिल हैं। बीस रुपया महीना पाते हैं, लेकिन पचास रुपये घर भेजते हैं। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मा,, आप इतने रुपये कहाँ से पाते हैं? हँसकर कहने लगे-बेटा,अल्लाहदेता है। फिर-आप ही बोले-हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मारलाएँ। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए। 

सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं। प्रस्तुत गद्यांश के अन्तर्गत ईदगाह के मार्ग में पुलिस लाइन की इमारत देखकर बच्चे आपस में बातचीत करते हैं। कोई उनकी दैनिक क्रिया बताता है तो कोई रात में पहरा देने वाली बात। एक उन्हें चोरों के साथ मिलकर चोरी करने वाला कहता है। 

व्याख्या - एक लड़के के यह कहने पर कि पुलिस चोरी न हो इसलिए रात-भर गश्त लगाती रहती है। मोहसिन, इसका विरोध करता है। वह हामिद सहित अन्य बच्चों को मूर्ख साबित करते हुए कहता है कि यही लोग (पुलिस) चोरों के साथ मिलकर चोरियाँ करवाते हैं और खुद दूसरे मोहल्लों में जागते रहो-जागते रहो' की आवाजें लगाकर पहरा देते हैं। इन चोरियों में मिले माल में इनका भी हिस्सा होता है। मोहिसन उन बच्चों को अपने एक मामा के विषय में बताता है जो कि पुलिस में है। 

वह कहता है कि उसके मामू की तनख्वाह तो केवल बीस रुपये मासिक है लेकिन वह हर महीने अपने घर पचास रुपये भेजते हैं। अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए मोहसिन अल्लाह की कसम खाकर कहता है कि उसने जब अपने मामू से यह पूछा कि उनको इतने रुपये कहाँ से मिलते हैं। तब पहले तो उन्होंने हँसकर कहा कि अल्लाह देता है। फिर खुद ही बताया कि यदि वह चाहें तो एक दिन में लाखों रुपया कमा सकते हैं। लेकिन वह रिश्वत में बस उतना ही रुपया लेते हैं, जिससे उनकी बदनामी न हो और न ह संकट आए। 

विशेष :

  • प्रस्तुत अवतरण में प्रेमचन्द ने पुलिस वालों की प्रवृत्ति और उनके प्रति लोगों की सोच का वर्णन किया है। 
  • आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद का चित्रण (आदर्शों के साथ यथार्थ का वर्णन)। 
  • उर्दू शब्द बहुल भाषा। 
  • विवरणात्मक शैली। 

7. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियों एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।

  संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश उपन्यास सम्राट, प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानी 'ईदगाह' से लिया गया है। प्रस्तुत अवतरण में कहानीकार ने ईद की नमाज अदा करने का यथार्थ वर्णन किया है। रोजेदार सामूहिक रूप में एक साथ सिज़दे में सिर झुकाते हैं, उठते हैं और घुटनों के बल बैठते हैं।

व्याख्या - कहानीकार प्रेमचंद ने ईदगाह के दृश्य का सजीव एवं चित्रोपम वर्णन किया है। रोजेदार पंक्तिबद्ध खड़े होकर नमाज अदा करते हैं। नमाज अदा करते समय लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं। सामूहिक रूप में एक साथ खड़े होते हैं, एक साथ झुकते और घुटनों के बल बैठते हैं। नमाज अदा करने की यह क्रिया बार-बार होती है। उनकी सामूहिक रूप में एक साथ की हुई क्रिया ऐसी प्रतीत होती है, मानो बटन दबाने पर बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रकाश बिखेर रही हैं और एक साथ बुझ जाती हैं। 

यह दृश्य बड़ा अद्भुत था। दूर तक लम्बी कतार में खड़े इन रोजेदारों की क्रियाएँ उनके हृदय में श्रद्धा, गर्व और आत्मिक प्रसन्नता भर रही थीं। दर्शकों का हृदय भी श्रद्धा और आनन्द से भर जाता था। उनमें भाईचारे भाव भरा था, लगता था जैसे माला में एक धागा सारे मोतियों को बांधे रखता है उसी प्रकार भ्रातृत्व के सूत्र ने उनकी आत्मा को बाँध रखा हो। सभी में एकता की भावना विद्यमान थी। 

विशेष :

  • नमाज अदा करने वालों की भावना का सुन्दर वर्णन किया है। 
  • इस्लाम धर्म में भ्रातृत्व भाव है, इसे स्पष्ट किया है। 
  • भाषा आलंकारिक है। 
  • भाषा सरल, सुबोध एवं प्रवाहपूर्ण है। 
  • वर्णनात्मक शैली है।

8. कितने सुंदर खिलौने हैं। अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाला पगड़ीवाला, कंधे पर बंदूक रखे हुए; मालूम होता है अभी कवायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए है। कितना प्रसन्न है। शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी उड़ेलना ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वत्ता है उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे हैं।

  सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथा-सम्राट 'मुंशी प्रेमचन्द' हैं। सामूहिक नमाज के बाद बच्चे मेले का आनन्द लेने पहुँच जाते हैं और खिलौने की दुकान से तरह-तरह के खिलौने खरीदते हैं।

व्याख्या - लेखक कहता है कि मेले में दुकानों पर रखे हुए खिलौने बहुत सुन्दर थे। वे सभी जीवित लग रहे थे। जैसे अभी बोल पड़ेंगे। महमूद ने खाकी रंग की वर्दी पहने और सिर पर लाल पगड़ी पहने हुए वाला सिपाही खरीदा। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अभी-अभी ड्रिल या परेड करके आया हो। मोहसिन को भिश्ती अच्छा लगा। उसकी झुकी कमर पर मशक लदी हुई है, जिसका मुँह उसने अपने हाथ से पकड़ रखा है। 

ऐसा लग रहा है कि वह प्रसन्न होकर कोई गीत गा रहा हो और अपनी मशक से जमीन पर पानी गिराना चाह रहा हो। नूरे को वकील से प्यार था अतः ल खरीदा। उसने काले चोले के नीचे सफेद कमीज पहन रखी थी, जिसकी जेब में सुनहरी जंजीर से बंधी घड़ी रखी हुई थी। उसके हाथ में कानून की मोटी किताब थी। वह खिलौना जीता-जागता वकील ही लग रहा था। उसे देखकर लगता था जैसे कोई वकील न्यायालय से किसी मुकदम की बहस करके आ रहा हो। 

विशेष :

  • दुकानों पर सजे रखे खिलौनों का सजीव वर्णन। 
  • खिलौनों के प्रति बच्चों का स्वाभाविक आकर्षण। 
  • वर्णनात्मक शैली। 

9. हामिद खिलौनों की निंदा करता है-मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि ज़रा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं। लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है। 

सन्दर्भ एवं प्रसंग - उपर्युक्त गद्यांश पाठ्य-पुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित प्रसिद्ध कहानी 'ईदगाह' से लिया गया है। जब सभी बच्चे खिलौने खरीदकर उनकी प्रशंसा करने लगते हैं तब हामिद खिलौनों की निंदा करता है, किन्तु मन ही मन उन्हें हाथ में लेने के लिए ललचाता भी है, किन्तु पैसे न होने के कारण वह उन्हें खरीद भी नहीं पाता है।

  व्याख्या - हामिद के दोस्तों ने खिलौनों की दुकान से मिट्टी के बने सुन्दर-सुन्दर खिलौने खरीदे किन्तु हामिद उन खिलौनों को कैसे खरीद सकता था। उसके पास कुल तीन ही पैसे तो थे। अतः वह उन खिलौनों की बुराई करके अपने मन को समझा रहा था। स्वयं से कहता है कि ये तो बस मिट्टी के बने हैं। यदि हाथ से फिसले तो तुरन्त टूट जाएंगे। लेकिन वह मन ही मन उन खिलौनों के लिए ललचाता है।

काश ये खिलौने कुछ देर के लिए उसके हाथ में आ जाते। इसी सोच के साथ उसके हाथ अपने ही आप अपने दोस्तों के खिलौनों की ओर बढ़ जाते हैं। किन्तु बच्चों में त्याग की इतनी भावना नहीं होती कि वे किसी और को अपना नया खिलौना छूने दें। अभी तो उनका खुद का ही शौक पूरा नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने खिलौना अभी तो खरीदा था तो अभी कैसे हामिद को दे सकते है बस ललचाई नजरों से खिलौनों को देखता रहा और उनकी निंदा करता रहा। 

विशेष :  

  • बाल मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण। 
  • खिलौनों के प्रति बच्चों का स्वाभाविक आकर्षण। 
  • वर्णनात्मक शैली। 

10. उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह ' चिमटा ले जाकर दादी को दे-दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी! फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज़ हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। ज़रा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई आँख उठाकर नहीं देखता। या तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूटकर बराबर हो जाएँगे। चिमटा कितने काम की चीज़ है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आए तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो।

  सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित 'ईदगाह' नामक कहानी से ली गई हैं। प्रेमचन्द ने हामिद के अपनी दादी के प्रति प्रेम और चिन्ता की भावना का वर्णन किया

व्याख्या - हामिद के साथ के बच्चे खिलौने लेकर आगे बढ़ गए। लेकिन हामिद लोहे के सामान की एक दुकान पर रुक गया। वह दुकान पर रखे लोहे के चिमटे को देखकर सोचने लगता है कि दादी के पास चिमटा नहीं है। जब भी वह चूल्हे पर रोटियाँ सेंकती हैं तो उनका हाथ जल जाता है। यदि वह यह चिमटा खरीद लेता है तो उनकी उँगलियाँ कभी नहीं जलेंगी और वह उसे खुश होकर बहुत सारी दुआएँ देगी। कम से कम घर में एक काम की चीज हो जाएगी। 

दा ? बस पैसों की बर्बादी है। बस थोडी देर की खशी है, फिर टूट-फट कर बराबर। चिमटा काम की चीज है। चिमटे की सहायता से कई काम हो सकते हैं। तवे से रोटी उतारी जा सकती है। रोटी को चिमटे से पकड़कर चूल्हे की आग में सेंका जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति आग माँगने आए तो तुरन्त चिमटे से चूल्हे से आग निकालकर उसे दी जा सकती है। ऐसा सोचकर हामिद चिमटा खरीदने का निश्चय करता है। 

विशेष : 

  • उपर्युक्त गद्यांश हामिद के विवेक एवं तर्क-बुद्धि को दर्शाता है।
  • हामिद का चिमटा खरीदना यह बताता है कि वह अपनी दादी से बहुत प्रेम करता है वह पैसों का सदुपयोग करना जानता है। 
  • बाल मनोविज्ञान का चित्रण। 
  • उर्दू मिश्रित सरल, सुबोध खड़ी बोली। 
  • मनोविश्लेषणात्मक शैली। 

11. हामिद-खिलौना क्यों नहीं है? अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया, चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, मेरे चिमटे का बाल भी बांका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है-चिमटा। 

सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रसिद्ध कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदकर उसे बंदूक की तरह अपने कंधे पर रखकर अपने दोस्तों के पास आया। तब उसके साथी उसका और उसके चिमटे का मजाक उड़ाते हैं। हामिद अपने तर्क के माध्यम से उनके मजाक का प्रत्युत्तर देता है। 

व्याख्या - हामिद महमूद के कथन को तर्कपूर्वक काटते हुए कहता है कि चिमटा किसी खिलौने से कम नही है। यदि इसे कंधे पर रख लो तो यह बंदूक बन जाता है। हाथ में लेने पर यह फकीरों का चिमटा बन जाता है। इसे मंजीरे की तरह भी बजाया जा सकता है। अपने चिमटे का प्रभाव जमाने के लिए हामिद अपने साथियों से कहता है कि यदि वह अपना चिमटा उनके खिलौनों में मार दे तो सभी जरा-सी देर में टूट जाएँगे। मेरा चिमटा इतना बहादुर है कि तुम्हारे सारे खिलौने मिलकर चाहे कितनी ताकत लगा लें, लेकिन मेरे चिमटे का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते है।

विशेष : 

  • सरल, सुबोध प्रवाहपूर्ण और मुहावरेदार भाषा। 
  • हामिद एक बुद्धिमान तथा समझदार लड़का है जो अपने तर्कों से सभी लड़कों को निरुत्तर कर देता है। 
  • तर्क प्रधान एवं प्रतीकात्मक शैली। 
  • प्रभावशाली संवाद। 

12. 'उसके पास न्याय का बल है नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है।' 

संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद की बाल स्वभाव पर आधारित कहानी 'ईदगाह' से ली गई हैं। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-1' की पहली कहानी है। हामिद के सभी साथी अपने खिलौनों की प्रशंसा कर रहे थे और हामिद का उपहास कर रहे थे। हामिद ने अपने चिमटे की उपयोगिता सिद्ध कर दी। उसके तर्कों को सुनकर सभी बच्चे परास्त हो गए। हामिद के तर्क न्यायसंगत थे। उन्हीं का वर्णन यहाँ किया है। 

व्याख्या - हामिद ने अपने साथियों की बात सुनकर अपने चिमटे का महत्त्व बताते हुए जो तर्क दिये वे न्याय- संगत और सत्य पर आधारित थे। उसने चिमटे की मिथ्या प्रशंसा नहीं की थी। उसने नैतिक आधार पर ही साथियों को निरुत्तर किया। उसने अपने मित्रों के साथ अनीति नहीं की। साथियों के खिलौने मिट्टी के थे जो नाशवान थे। उसका चिमटा लोहे का जो कठोर और मजबूत था। 

खिलौने सुन्दर हो सकते हैं किन्नु नाशवान हैं, चिमटा शीघ्र टूटने वाला नहीं है। मिट्टी के खिलौने कमजोर हैं। वे फौलाद के समान कठोर नहीं हैं। उसका चिमटा रुस्तमे हिन्द है। शेर के सामने भिश्ती के छक्के छूट जाएंगे, सिपाही मिट्टी की बन्दूक छोड़कर भाग जाएगा, वकील साहब की तो नानी ही मर जाएगी। तुम्हारे खिलौने कायर हैं, मेरा चिमटा अजेय है। शेर की गर्दन पर चढ़कर उसकी आँख निकाल लेगा। मेरा चिमटा तुम्हारे खिलौनों पर वार कर दें तो उनकी पसलियाँ टूट जायें। वह घातक है। हामिद के तर्क न्यायसंगत थे। 

विशेष :

  • बाल मनोविज्ञान का चित्रण है। 
  • तार्किक हामिद के चरित्र को उभारा है। 

13. बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना जब्त इससे हुआ कैसे ? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद हो गया। 

संदर्भ-प्रस्तुत गद्यावतरण प्रेमचंद की बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी 'ईदगाह' से उद्धृत है। प्रसंग मेले में हामिद ने कुछ नहीं खाया और तीन पैसे में अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद लिया। चिमटे को देखकर अमीना को क्रोध आया किन्तु हामिद का कथन सुनकर उसका क्रोध शान्त हो गया और हामिद के प्रति स्नेह उत्पन्न हो गया, जिसे वह शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकी। 

व्याख्या - हामिद के हाथ में चिमटा देखकर बुढ़िया अमीना को क्रोध आ गया। दिनभर इसने कुछ नहीं खाया और तीन पैसे खर्च करके केवल चिमटा खरीद लिया। उसकी बेसमझी पर अमीना को क्रोध आया। किन्तु हामिद का सरल उत्तर सुनकर अमीना का क्रोध शान्त हो गया और तुरन्त ही स्नेह का भाव जाग्रत हो गया। वह स्नेह ऐसा नहीं था जिसे वह बोलकर व्यक्त करती। अन्दर ही अन्दर उसका हृदय स्नेह से अभिभूत हो गया। 

यदि वह उस स्नेह को बोलकर व्यक्त करती तो उसमें कुछ क्रोध का पुट हो सकता था जो अमीना को कष्ट देता। उसका वह स्नेह अव्यक्त था जिसे वह मौन रूप में व्यक्त कर रही थी। उसका स्नेह हृदय के अन्तरतम में व्याप्त था, वह वास्तविक था, उसमें गहराई थी। अमीना के स्नेह में वात्सल्य का रस भरा था और हामिद के भोलेपन तथा अपने प्रति स्नेह का स्वाद भरा था, आनन्द का स्वाद भरा था। अमीना सोचने लगी हामिद ने अपनी इच्छाओं का दमन करके कितना बड़ा त्याग किया है। उसके हृदय में मेरे प्रति कितना सद्भाव है। 

वह कितना विवेकी है जो उपयोगी वस्तु को खरीदकर लाया है। जब अन्य सभी खिलौने खरीद रहे होंगे और मिठाई खा रहे होंगे तब उसका मन भी ललचाया होगा तब इस संयमी बच्चे ने मन पर नियंत्रण कर मेरी चिन्ता करके चिमटा खरीदा, यह उसके त्याग और सद्भाव का प्रमाण है। उस मेले में भी वह अपनी बुढ़िया दादी को नहीं भूला। यह सोचकर अमीना का मन गद्गद हो गया। 

विशेष :

  • मनोवैज्ञानिक वर्णन है। अमीना की मनः स्थिति का मार्मिक चित्रण है। 
  • भाषा सरल एवं भावानुकूल है। 
  • अमीना के हृदय का थोड़ा-सा अन्तर्द्वन्द्व दिखाया है।

गुड़िया के पैसे मांगने पर लेखक ने क्या समझा?

लेखक ने समझा की बुढ़िया भीक मांग रही है और उसके बेटे के इलाज के लिए पैसे मांगना तो एक बहाना है । 2. रात में लेखक इसलिए डरने लग गया क्युकी उसकी मोटरसाइकिल खराब हो गई और वह एक घने जंगल के बीच फस गया ।

लेखक ने बुढ़िया को क्या समझा?

जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है। 2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है। 3.

बेटी द्वारा पैसे दिए जाने पर बुढ़िया ने क्या कहा?

1. बेटी द्वारा पैसे दिए जाने पर बुढ़िया ने क्या कहा? उत्तर: बेटी द्वारा पैसे दिए जाने पर बुढ़िया ने पैसे लेने से इंकार करते हुए कहा कि मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं घर-घर जाकर पैसे माँगू।

लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया?

लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाजा लगाने के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली एक संभ्रांत महिला को याद किया। उस महिला का पुत्र पिछले वर्ष चल बसा था। तब वह महिला ढाई मास तक पलंग पर पड़ी रही थी। उसे अपने पुत्र की याद में मूर्छा आ जाती थी।

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